दूसरों की गलतियाँ आसानी से क्यों दिखती हैं? 6 Steps में जानें ‘Self-Knowledge Illusion!

By Rao Anwar

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Why Do We See Others’ Mistakes But Not Our Own

1. Introduction: खुदके ज्ञानी होने का भ्रम क्या होता है?

The Illusion of Self-Knowledge

हमें ऐसा लगता तो है कि हम, खुदको ऐसे ही पहचानते हैं (Self-Knowledge) जैसे किसी को भी जानना होता है? या यह कि हम खुदको अच्छे से जानते हैं, बल्कि औरों से ज़्यादा! क्या वाक़ई आपको ऐसा लगता है कि आपने खुदको पहचाना है, वो मुहावरा आपने ज़रूर सुना होगा कि “पहले खुदको तो देख लो” हम में से ज़्यादातर को यही लगता है कि सामने वाला बन्दा हमें यह बात इसलिए कह रहा है क्योंकि वो हमारी बात से चिढ़ चुका है, या वो अपनी गलतियों को मानना नही चाहता। 

2. Why We Judge Others More Than Ourselves: आख़िर हम खुदसे ज़्यादा दूसरों कि गलतियाँ क्यों ढूंढते हैं?

Why We Judge Others More Than Ourselves

क्या सच में 😌😳……

असल में बात तो यह है कि हम खुदसे ज़्यादा दूसरों को जानते हैं, ऐसा हम सोचते हैं, किसी दूसरे की ज़ाहिरी तौर पर (सामने नज़र आने वाली Situation) दिखने वाली हालत को देखकर अंदाज़ा लगाते हैं।

मैं एक बात समझ नही पाता कि हमें किसी दूसरे की गलतियों की इतनी फिक्र क्यों है? जबकि यह मुमकिन है कि हमारे खुदके अंदर हज़ारों कमियाँ हैं, और हमें पता तक नही है। 

इस बारे में इंग्लिश आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ :- Self-knowledge is a super power – if it’s not an illusion

हमें पता क्यों नही है? आपको अभी खुदसे सवाल करना चाहिए? 

मैं आपको फिर से याद दिला देता हूँ, क्योंकि हम सुनते कम और बोलते ज़्यादा हैं। या यह कहें कि हम वही सुनना चाहते हैं, जो खुदको अच्छा लगे, या जिसमें आपकी तारीफ की गयी हो! 

3. The Trap of Defensiveness: खुद अपने ही जाल में फँस जाना कैसा होता है?

The Trap of Defensiveness

Critical thinking:- जैसे ही कोई आप पर सवाल उठाता है, आपकी गलतियों को उजागर करता है, आपको कुछ सही नही लगता सिवाय इस बात के कि खुदको कैसे defend किया जाए। क्योंकि अगर ऐसा अपने न किया या तो आप Exam में fail हो जाएंगे, या फ़िर आपकी बे-इज़ती हो जाएगी। 😶 

अगर ऐसा है तो करते रहें खुदको defend! पर याद रखें? क्या आपको लगता है कि आप सबसे लड़कर जीत जाएँगे! या खुदको बेहतर साबित कर देंगे! ऐसा करके आप कुछ लोगों को तो defeat कर भी सकते हैं, जैसा कि आपको लगता है! पर कब तक ऐसा करेंगे?? 

यही तो मैं समझाने की कोशिश कर रहा हूँ, या फ़िर यह सोच लीजिये कि याद दिला रहा हूँ, “कि आप भूल गए, आपको सिर्फ़ जीतना था, पर खुदको defend करके नही, बल्कि खुदको साबित करके। 

क्या हो अगर आप अपनी जगह सही हों तो?

क्या ही किया जाये? यह जज़्बात चीज़ ही ऐसी है हम चाहकर भी खुदको रोक नही पाते हैं। हमसे चुप रहा ही नही जाता है, क्योंकि हमें बिल्कुल बर्दाश्त नही कि हमारे बारे में कोई गलत बोले। इस बात में मैं आपके साथ हो सकता हूँ, बस एक शर्त है? 

4. Family, Society, Pressure: परिवार की तरफ से आप पर उंगली उठे तो क्या करें?

Family, Society, and the Pressure to Defend

मुमकिन है कि आपको लगता होगा कि आप अपनी जगह सही हैं, और आपकी फैमिली आपकी गलतियों को गिनाती है! आप कितनी ही कोशिश कर लें, किसी भी एंगल से सोचने की, पर इसमें एक बात निकलकर सामने आएगी, कि अक्सर case में यह निकलेगा कि आपने!

अपने चाहने वालों का कहना नही माना, जिसकी वजह से वो सवाल उठाने वाली उँगली आपकी तरफ है। परिवार के मसले में अक्सर यह बात मायने नही रखती कि आपकी गलती थी या नही। यह आपको सोचना है कि कैसे चीज़ों को tackle करना है? 

क्योंकि argue करने से कोई कभी नही जीत सकता! और याद रखें कि किसी को चुप करा देना कोई जीत नही होती, बल्कि आपके आपके लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात है, कि आपने जिसे चुप कराया है, अपनी बातों से! उसपर क्या गुज़री होगी। जबकि आप पर जो सवाल खड़ा किया जा रहा था वो सही था।

और यह चीज़ कम-समझ या एक नोजवान के साथ ज़्यादा होती है, और हो भी क्यों ना। Struggle के face में यह बात आम है। याद रखें जब तक आप नकाम हैं, कोई आपको मुँह नह लगाने वाला। जब तक आप नकाम हैं! आपको यह लगेगा कि हर कोई बस आपके पीछे पड़ा है।

5. Self-Reflection: खुदकी आलोचना को आप कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं?

Self-Reflection: How Do You React to Criticism?

एक Test कर लिया जाए:-

खुदसे सवाल करिये कि क्या होता है जब आपपर कोई सवाल उठाये, कि “आपने आज तक उखाड़ा ही क्या है, या किया ही क्या है?” तो आपको कैसा लगता है?

  • क्या आपको सामने वाले पर गुस्सा आता है, या फिर खुदपर शर्मिंदगी होती है। आप ज़ोर-शोर से खुदको defend करते हैं या हल्के फुल्के अंदाज़ में यह कोशिश करते हैं। या फिर बिल्कुल चुप रहते हैं!
  • सामने वाले पर गुस्सा आना की एक वजह तो यह हो सकती है कि आपकी उम्र कम है, दूसरा या हो सकता है सामने वाला बिल्कुल झूठ कह रहा है! अनजाने में ही सही! तीसरी वजह यह है कि आपको पता है कि कामयाबी पाने के लिए आपने क्या-क्या नही किया? पर आपके कुछ हाथ न लगा। 
  • खुदपर शर्मिंदगी का होना:- आप ज़रूर एक अच्छी उम्र में हैं, जिस उम्र में बहुत सी बातों की तमीज़ हमें हो जाती है। अब आपको पता है कि आप गलत हैं, और सामने वाला सही है! आपकी ख़ामोशी दूसरे की बातों की सदाक़त और आपके fail रहने की दलील है। और आपको अहसास है कि यह situation ऐसी है कि कोई मतलब नही बनता खुदको defend करने का। 
  • खुदको बड़े ज़ोर-शोर से defend करना:- इसमें यह पॉसिबिलिटी हो सकती है कि आपको अंदर से यह बात यक़ीनी हो कि आप अपनी जगह सही हैं, और दूसरा गलत। इसलिए आपने ख़ुदको defend करना चुना।
  • ख़ुदको defend करना गलत नही है, अगर आप सही हैं, लेकिन ज़रूरी नही कि आप हर बात में सही हों, इसलिए उन बातों से भी रुजू करना ज़रूरी है, जो गलत बातें आपसे हुई हैं, जाने या अनजाने में।

6. Breaking the Cycle: जिम्मेदारियों को न अपनाना और बहाने बनाना?

Breaking the Cycle: Accountability vs. Excuses

अक्सर ऐसा होता है कि हम गलत तो हैं, पर पूरी तरह नही! इसकी वजह एक तो यह हो सकती है कि आपके हालात ही ऐसे रहे होंगे जिसकी वजह से अड़चनें आपकी कामयाबी में रोड़ा बनीं।

अड़चनों की Posibility ऐसे समझें कि कुछ भी हो सकती हैं। इस बात में कोई शक नही कि अड़चनें ज़्यादातर घरेलू ही आती हैं, और इसमें हमारा माहौल भी काफी हद तक ज़िम्मेदार होता है, हमको बनाने या बिगाड़ने में! 

पर यह बात पूरी तरह सही नही मानी जा सकती कि 100% माहौल की ही गलती मानी जाए, या किसी एक individual की तरफ, अपनी नकामी का ठीकरा फोड़ा जाए।

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम ख़ुदको एक Soft way में defend करने की कोशिश करते हैं, जिसकी वजह है कि हम अब तक अपनी नाकामी के पीछे कईं वजहों को ज़िम्मेदार मानते हैं, सिर्फ़ ख़ुदको नही।

अगर ऐसी बात है तो हम कभी बहानों से निकल ही नही सकते हैं, जब तक कि इसके लिए ख़ुदको पूरी तरह ज़िम्मेदार न मान लें। 

जो वजहें आज आप बयान करते हैं, वो कल की बातें हैं। बेहतर होगा कि आप आज की बात करें। आज और अभी क्या करना है, इसमें अपना टाइम लगायें, तब मानें कि आप सच में! अब mature हो चुके हैं। 

Conclusion: क्या इल्ज़ाम लगने पर ख़ुदको defend करना भी अपनी गलतियाँ छिपाना होता है?

Conclusion: The Courage to Accept Flaws- क्या

इल्ज़ाम लगने पर ख़ुदको defend करना तभी गलत होता है, जबकि आप गलत हों, पर कुछ छोटी और नज़रअंदाज़ किये जाने लायक बातें ऐसी होती हैं, जिनको न अगर defend किया जाए तो आप पर बिना वजह का दाग लग सकता है, इस लायक बातों में हो सकता है आप पर इल्ज़ाम सही लग रहा हो पर तब भी आपको ख़ुदको defend करना पड़ता है।

क्योंकि आप जानते हैं कोई काम आपसे अनजाने में हुआ है। हाँ अगर जानबूझकर आपसे कुछ भी गलत हुआ तो अपनी गलती मान लें, और उस इल्ज़ाम पर वहीं लगाम लगा दें। 

लोगों को माफी माँगना, अपनी गलती स्वीकारना, बड़ा दुःखदायक मालूम होता है! ऐसा लगता है मानो उनसे उनकी हैसियत छीन ली गयी हो, वो हैसियत जिसे वो काफी सर पर चढ़ा लेते हैं।

और जब ऐसा मौक़ा आता है, अपनी गलती या माफी मांगने का तो उनके लिए यह ऐसा है जैसी उनकी इज़्ज़त बाक़ी न रहें, और ऐसा कि उन्होंने किसी के आगे ख़ुदको Surrender कर दिया है। 

हाँ मैं मान लेता कि वो इन सब बातों में सही हैं, कि उनका मर्तबा काफी बड़ा माफी मांगने से कहीं बढ़कर! अगर यह हो कि उनको सुईं चुभोई जाए और उनको दर्द न हो! आप खुदके मर्तबे को एक सुईं से बढ़ा न सकें, तो ऐसा घमंड साथ रखने का सवाल ही नही बनता है। 

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